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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

भक्ति वहीं है जहां अहंकार नहीं है। पतन का मार्ग तो अहंकार से होकर जाता है। भक्ति समझने के लिये हमें स्वयं को अहंकार से मुक्त करना होगा। अहंकार से मुक्ति गुरू की शरणागत जाकर उनसें जीवन का उद्देश्य का ज्ञान होने पर धीरे-धीरे मनुष्य अहंकार से मुक्त हो पाता है। साथ ही अपना दृढ़ निश्चय रखना पड़ता है। क्योंकि भक्ति के मार्ग में विघ्न आना अवश्य सम्भावित है। जो एक प्रकार से मनुष्य की परीक्षा है। जो दृढनिश्चयी व्यक्ति होता है वो ही इन विषम परिस्थितियों को लाँघ पाता है इसलिये भगवद्धाम वापस जाने के लिये टिकट खरीदने का प्रयास करना चाहिये जिसका केवल एक ही मूल्य है तीव्र इच्छा का होना, जो सरलता से नहीं मिलती। भले ही कोई इजारों जन्मों तक पुण्य कर्म क्यों न करते रहें। जिस प्रकार चाहे कितनी भी नम्र शय्या क्यों न हो जब तक हमारे पास अच्छी नींद नहीं है, नींद नहीं आयेगी। उसी प्रकार जब तक भूख न हो चाहे हमें सोने की थाली में छत्तीस व्यंजन परोसें जायें हम उसका सेवन नहीं कर पायेगें । जैसा कि वर्णन है,

यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । तस्यैयते कथिता हार्था: प्रकाशन्ते महात्मनः ॥

(६.२३) श्वेताश्वर उपनिषद् ।

"केवल उन महात्माओं को वैदिक ज्ञान का सार अर्थ स्वतः प्रकट होता है जिन्हें भगवान तथा गुरू दोनों पर ही निश्चित श्रद्धा होती है।
यह भक्ति का मार्ग क्रोध, वासना, लालच, आदि विसंगतियों से मुक्ति एवं शांति तथा आनन्द प्राप्ति दिलाने का सहज मार्ग है।

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