श्रील प्रभुपाद उपदेशामृत
अवश्य ही । हमें किसी की भी वञ्चना न कर सबके समक्ष निर्भीक रूप से सत्य बात बोलनी चाहिए। जिससे जीवों का कल्याण होता हो, ऐसी सत्य बात अप्रिय होने पर भी अवश्य ही बोलनी चाहिए। इससे किसी को उद्वेग नहीं मिलेगा । वास्तविक सत्य का ही अनुसन्धान करना चाहिए। पृथ्वी के समस्त लोगों का कल्याण कैसे हो? इसपर विचार करने की आवश्यकता है। दृढप्रतिज्ञ को अपने एवं दूसरे का कल्याण करना चाहिए। केवल वर्तमान युग के मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी युगों के मनुष्यों के नित्य कल्याण के लिए चेष्टा करनी चाहिए। जहाँ पहुँच कर वापस नहीं आना पड़ता, ऐसे सुखमय वैकुण्ठ की बातें ही सभी लोगों को बतानी चाहिए। उस अप्राकृत जगत की बातें दूसरों को बताने के लिए पहले हमें स्वयं श्रीगुरुदेव के चरणकमलों का आश्रय अवश्य ही लेना चाहिए ।
हमें सर्वदा ही दिव्यज्ञान प्रदाता श्रीगुरुदेव के चरणकमलों की सेवा करनी चाहिए । यदि हम घर में रहते हैं, तो घर के सभी लोगों के साथ मिलकर उनकी सेवा करें। हमें अच्छे-अच्छे घरों में भगवान एवं भक्तों को ही रखना चाहिए, स्वयं कुटी में रहना चाहिए । यदि हम स्वयं न खाकर भगवान को खिलाएँ, तभी हम उनकी करुणा को प्राप्त कर सकते हैं। हमें सब समय स्मरण रखना चाहिए कि संसार की प्रत्येक वस्तु भगवान की ही है। यदि जगत की सभी वस्तुओं को भगवान की सेवा में लगा दिया जाय तभी जीवन सार्थक होगा। इन सब बातों का पहले स्वयं आचरण कर प्रचार करना चाहिए। यदि निर्भीक रूप से शास्त्र की सत्य बातों को न बोला जाय तो श्रीगुरु एवं गौरांग प्रसन्न नहीं होंगे । जिसकी भक्ति - शक्ति एवं दृढ़ता जितनी अधिक होगी, वह उतने ही अधिक परिमाण में निर्भीकतापूर्वक प्रचार कर पायेगा। लोगों के सामने निरपेक्ष सत्य बातों को कहने से लोग नाराज हो जायेंगे, यदि इस भय से मैं सत्य बात न कहूँ, तो समझना चाहिए कि मैंने श्राैतपथ त्यागकर अश्रौतपथ को ग्रहण कर लिया है। जिससे में नास्तिक एवं वञ्चक हो गया हूँ ।
जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर