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श्रील प्रभुपाद: "एक कृष्णभावनाभावित व्यक्ति, वह कभी नहीं सोचता है कि "मैं कुछ कर रहा हूँ ।" भले ही आप उससे पूछो कि "क्या आप फलां जगह जा रहे हो?" मान लीजिए कि यह तय हो गया है कि वह फलां जगह जा रहा है। अगर आप उससे पूछते हो, "तुम कब जा रहे हो?" वह कहेगा कि, "मुझे नहीं पता कि मैं कब जाऊँगा, लेकिन जब कृष्ण मुझे चाहेंगे या मुझे जाने की अनुमति देंगे, तो मैं जाऊँगा।" मैं यह अपनी व्यावहारिक अनुभव से कह रहा हूँ मेरे गुरु महाराज की ओर से, मेरे आध्यात्मिक गुरु से। वे कभी नहीं कहेंगे कि "मैं जा रहा हूँ," "मैं कर रहा हूँ," नहीं। "अगर कृष्ण चाहते हैं, तो मैं यह करूँगा।" "अगर कृष्ण चाहते हैं, तो मुझे जाना होगा ।" इस तरह । हमेशा कृष्ण पर निर्भर रहना । इसे विशुद्धात्मा कहा जाता है ।"

(श्रील प्रभुपाद व्याख्यान, भगवद गीता ५.७-१३, २७ अगस्त, १९६६, न्यूयॉर्क)

ORIGINAL ENGLISH

Always depending on Kṛṣṇa. This is called viśuddhātmā.
Srila Prabhupāda: "A Kṛṣṇa conscious person, he never thinks that "I am doing something." Even if you ask him that "Are you going to such and such place?" Suppose it is settled that he's going to such and such place. If you ask him, "When you are going?" He'll say that "I do not know when I shall go, but when Kṛṣṇa will ask me or allow me to go, I shall go." I am saying this from my practical experience from my Guru Mahārāja, from my spiritual master. He would never say that "I am going," "I am doing," no. "If Kṛṣṇa desires, then I shall do it." "If Kṛṣṇa desires, then I shall go." Like that. Always depending on Kṛṣṇa. This is called viśuddhātmā."

( Śrīla Prabhupāda Lecture, Bhagavad-gītā 5.7-13, August 27, 1966, New York)

जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद की जय!!

कलियुग का युगधर्म और भक्तिमार्ग में प्रगति करने का एकमात्र सरल व सुलभ मार्ग है यह ..

              "हरे कृष्ण महामंत्र"

सदैव जपिये...

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

          हरिबोल खुश रहिये ....